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Story of ostrich

शुतुरमुर्ग की कहानी- एक समय की बात है। एक बार एक जंगल था। जिसमेंं सिर्फ परिंदे ही रहते थे। इस जंगल में एक शुतुरमुर्ग भी था।
एक दिन उस शुतुरमुर्ग ने जंगल में घोषणा की कि कल सुबह 9:00 बजे हम आसमान में उड़ेंगे।
यह घोषणा जब जंगल के परिंदों ने सुनी तो सब हैरान रह गए।
उन्होंने सोचा कि यह इतना भारी भरकम परिंदा है यह कैसे उड़ेगा?
फिर भी उस शुतुरमुर्ग की विशिष्टता पर, उसके अलग होने पर और उसके दमदारी पर सब को यकीन था।

अगले दिन 9:00 बजे सारे परिंदे जंगल में एक जगह पर इकट्ठे हो गई।
शुतुरमुर्ग भी आया। उसे सबसे पहले उड़ने की महिमा पर एक जोरदार तकरीर की।
हर परिंदा रोमांच से भर आया।
जो बेसब्र परिंदे थे। उनमें से कुछ ने तो यह भी कहा कि भाई यह तकदीर क्यों हो रहा है?
खैर जब तकदीर खत्म हुई। तो शुतुरमुर्ग ने अपने विशाल पंख हवाई जहाज की मुद्रा में फैला लिए ऐसा देखते हैं सारे परिंदे शुतुरमुर्ग जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लगाने लगे। इनमें से कुछ परिंदों ने तो यह भी सोचा की यह परिंदा आज जिंदगी में पहली बार उड़ने जा रहा है। ऐसा माहौल बना है कहीं,ऐसा ना हो कि यह पहली बार उड़े तो इसे उड़ना इतना पसंद आए। यह इस जंगल में वापस ही ना लौटे तो हो सकता है कि यह उड़ान इस जंगल की इस की आखिरी उड़ान हो।
इसलिए उड़ने से पहले इसका नागरिक अभिनंदन होना चाहिए।

यह बात धीरे-धीरे पूरे जंगल में आग की तरह फैल गई और सारे परिंदे जो वहां पर इकट्ठा हुए थे सब परिंदों में भी फैल गई।
उन परिंदों में से कुछ परिंदों ने शुतुरमुर्ग के लिए मंगल गान गाया। कुछ ने वादय बजाएं और कुछ ने कसीदे पढ़े और कुछ ने नारे लगाए।
जब यह नागरिक अभिनंदन खत्म हुआ तो शुतुरमुर्ग उसी तरह अपने पंखों को हवा में हवाई जहाज की भांति फैलाए आगे बढ़ा।
उसने दौड़ लगाई और दौड़ते दौड़ते बिना कुछ बताए अपने घर की तरफ मुड़ गया।

यह सब तमाशा शुतुरमुर्ग की पत्नी ने देखा। उसकी पत्नी ने रास्ते में उससे मिलकर पूछा कि हे प्रभु! आपने यह कैसे ड्रामा रचा।
शुतुरमुर्ग बोला यह ड्रामा नहीं यह तो मेरा मास्टर स्कोप है।
पत्नी ने पूछा कैसा मास्टर स्कोप?
आपने इतनी बड़ी बड़ी बातें की तकरीर की घोषणा की और फिर बिना उड़े ही उल्टे पैर को दौड़ आए।
शुतुरमुर्ग बोला मैं तो उड़ जाता लेकिन तुमने देखा नहीं कैसे मेरे उड़ने की खबर सुनकर जंगल के सब परिंदे उदास हो गए। मेरे वियोग में परेशान हो गए।
उन्हें डर लग रहा था कि पता नहीं मैं इस जंगल में वापस लौटूंगा या नहीं।
तो मुझे लगा यह परिंदे मेरा वियोग नहीं झेल पाएंगे और मैंने इनकी उदासी को दूर करने के लिए इनके हित में ना उड़ने का फैसला लिया।

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मगर पत्नी ने Point को पकड़ते हुए फिर से पूछा कि हे प्रभु! आप बताएं कि आप जानते हो कि मैं कुदरती तौर पर नहीं उड़ सकता।
तो आपने यह हमारी घोषणा क्यों की। क्यों मूर्ख बनाया लोगों को।
फिर शुतुरमुर्ग ने बोला मैंने लोगों को मूर्ख नहीं बनाया।
यह मूर्ख है। और जो इनमें से मूर्ख नहीं है वह अत्यंत भावुक है। और जो अत्यंत भावुक भी नहीं है और ना ही मूर्ख है। समझदार हैं वह तो यहां आए ही नहीं। तो तुम्हें क्या लगता है कि मैंने मूर्ख बनाया?

पत्नी ने पूछा कि प्रभु! मगर इस हवाई घोषणा से आपका क्या फायदा?
शुतुरमुर्ग ने फरमाया अगर मैं यह घोषणा नहीं करता तो मेरा क्या यह भव्य स्वागत होता।
मेरे लिए वाद्य बजाए जाते हैं, कसीदे पढ़े जाते यह मंगल गान गाया जाता।

पत्नी ने फिर कहा कि प्रभु! आपका तो खूब मजाक बना होगा। क्योंकि आपने इतना बड़ा माहौल बनाया। और उसके बाद भी आप उड़े ही नहीं।
शुतुरमुर्ग ने फरमाया कि मेरा मजाक बिल्कुल नहीं बना होगा क्योंकि मजाक बनाने के लिए, मजाक बर्दाश्त करने के लिए स्वतंत्र सोच होनी चाहिए।
जो इन में से किसी की भी नहीं है।
बल्कि यह परिंदे तो यही मान रहे होंगे कि मैंने इनके हित में इनकी उदासी को दूर करने के लिए इनके वियोग के ताप को दूर करने के लिए ना उड़ने का फैसला किया पत्नी ने फिर पूछा आप तो बिना कुछ बताए ही इधर आ गए। तो इन लोगों को ऐसा क्यों लग रहा होगा।
शुतुरमुर्ग ने कहा क्योंकि मैं इधर आने से पहले अपने डिप्टी को समझा कर आया हूं। कि जब मैं चला जाऊं तो तुम एक जोरदार तकरीर करना और उन परिंदों को यह यकीन दिला देना कि मैं घोषणा के बाद भी इसलिए नहीं उड़ा की उन लोगों का हित हो, इन लोगों को मेरी वजह से कोई तकलीफ ना हो और मैंने जो किया जितना किया परिंदों के हित में किया और सोच समझकर ही किया।

धन्यवाद....!
Story by thelallantop