मोबाइल से पहले की दुनिया कैसी थी?

कैसे हैं आप सब समीर नाम है हमारा और आप पढ़ना शुरू कर चुके हैं मेरी कहानी-SamStoriesHindi!
Mobile se pahle ki duniya kaisi thi
 Mobile se pehele ki duniya


    मोबाइल से पहले की दुनिया एक हसीन दुनिया थी। हां मैं मानता हूं मोबाइल फोन, इंटरनेट से हमें बहुत सुविधाएं मिली है। ये सुविधा जरूरी भी थीं हमारे लिए।
लेकिन फिर भी मोबाइल से पहले की दुनिया best थी
मेरा मानना है।
क्योंकि smartphones ना एक बीमारी से कम नहीं है।
अलसी होकर एक जगह पड़े रहना। कोई कुछ कहे तो उसके बिल्कुल नहीं सुनना। 
मुझे पता है मोबाइल चलाए बिना कितनों को नींद भी नहीं आती।
यही तो बीमारी है।
आंखों का खराब होना,कमजोरी आना
आजकल ऑनलाइन लड़ाई होती है न्यू trend चल रहा है आजकल।
मोबाइल फोन से पहले की दुनिया कितनी अच्छी थी ना।

      Mobile se pahle ek din!

90's के जमाने के खेल कितने अच्छे थे ना।
बच्चों का गली का वह क्रिकेट मैच सभी को रोमांच से भर देता था।
और जब इंडिया-पाकिस्तान का मैच होता था तो पूरी गली के लोगों का एक जगह पर इकट्ठा होकर एक साथ मैच देखना। बोल बोलकर इंडिया को जिताने की कोशिश करना। इंडिया के जीत जाने पर रात को पटाखे जलाना। बहुत याद आते हैं ना वो दिन।
आजकल तो सभी अपने अपने घरों में ही बंद रहते हैं अपने अपने काम में व्यस्त रहते हैं।
कुछ खास था उन दिनों में तभी तो याद आते हैं वो दिन
वो भी क्या दिन थे ना हमारे पास ना तो पैसे होते थे फिर भी प्लेन उड़ाने का शौक रखते थे। असली प्लेन तो नहीं उठा पाते थे फिर भी पेपर के प्लेन से काम चलाते थे।
जब गर्मी की छुट्टी होती थी तो गांव की तरफ जाते थे।
दोपहर को आइसक्रीम वाले का इंतजार भी करते थे।
हवाई जहाज की आवाज सुनकर सभी बाहर निकल जाते थे। हवाई जहाज को पकड़ तो नहीं पाते थे फिर भी उसके पीछे पीछे भागते जरूर जाते थे।
शाम होते ही सभी बच्चे पतंग लेकर छत पर चढ़ जाते थे। और जब रात को लाइट चली जाती थी पूरे मोहल्ले के लोग अपने घर से बाहर आ जाते थे।
रात को छत पर सोने भी जाते थे। बारिश आने पर वापस भी आते थे।
मेले में जाते थे  ₹50 लेकर फिर भी पूरा मेला घूम लिया करते थे उसी ₹50 में।
पापा के थोड़ा सा मारने पर रोने लग जाते थे लेकिन जब एक रुपए मिलते तो दोबारा खुश हो जाया करते थे।
छोटी-छोटी बातों पर रूस नहीं जाया करते थे अपने देश में ही रहते थे।
छोटी-छोटी बातों को मिलाकर एक बड़ा सा संसार बनाया करते थे। सभी के साथ मिलकर रहते थे तभी तो ये परिवार कहलाया करते थे।
एक रुपए के लिए पूरे दिन पैर दबाया करते थे
मिलते ही रुपए भाग जाया करते थे।
            "घर कच्चे होते थे
             कमरे छोटे होते थे 
              लेकिन मां-बाप कभी
              वृद्धाश्रम में नहीं होते थे।"
             जाने क्यों......
                                             
          "खाने को सादा दाल रोटी होती थी
                लेकिन फिर भी किसी को
            खून की कमी नहीं होती थी।"
                    जानें क्यों......

           "माता-पिता जरा सी बात पर
             थप्पड़ जड़ दिया करते थे
            फिर भी उनका सम्मान कम
                   नहीं करते थे।"
                          जाने क्यों......

          "ना कोई जिम होती थी 
             ना कोई योगशाला
        फिर भी सभी तंदुरुस्त 
               रहते थे।"
                    जाने क्यों......

       "ना महंगे खिलौने मिलते थे
             लेकिन फिर भी हर खेल
                      आनंदित होता था।"
              जाने क्यों.......

         "ना मोबाइल ना इंटरनेट फिर
             भी सभी रिश्तेदार दिल
            से जुड़े रहते थे।"
                       जाने क्यों.......

          "इस पैसे कमाने की होड़
             मैं जिंदगी जीने का
             असली मजा भूल गए
                      है सब।"
               जाने क्यों........
जाने कहां गए वो दिन..........
 Yaden taaja Hui to faila do ise!!

Written by Sameer Ansari 🙏🏻
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